राग रागिनी वर्गीकरण को विस्तार से समझाएं || Explain Raga-Ragini classification in detail || CLASSICAL MUSIC ||
( 1 ) श्री- मालश्री , त्रिवेणी , गौरी , केदारी , मधुमाधवी , पहाड़िका ।
( 2 ) बसन्त- देशी , देवगिरी , वराटी , टोड़िका , ललिता , हिंदोली ।
( 3 ) भैरव- भैरवी , गुजरी , रामकिरी , गुणकिरी , बंगाली , सैंधवी ।
( 4 ) पंचम- विभाषा , भूपाली , कर्णाटी , नड़हंसिका , पालवी , पटमंजरी ।
( 5 ) वृहन्नाट- कामोदी , कल्याणी , अमरी , नाटिका , सारंगी , नट्टहम्बीरा ।
( 6 ) मेघ- मल्लारी , सोरठी , सावेरी , कोशिकी , गंधारी , हरश्रृंगार ।
(2) हनुमान - इस मत के अनुसार 6 राग और प्रत्येक राग की 5 - 5 रागिनियाँ होती हैं। इस मत के 6 रागों और 30 रागिनियों के नाम निम्नांकित तालिका में दिए जाते हैं।
( 1 ) भैरव- मध्यामादि , भैरवी , बंगाली , बराटिका , सैंधवी ।
( 2 ) कौशिक- तोड़ी , खम्बावती , गोरी , गुणक्री , ककुभ ।
( 3 ) हिंदोल- बेलावली , रामकिरी , देशाटया , पख्मंजरी , ललिता ।
( 4 ) दीपक- केदारी , कानड़ा , देशी , कामोदी , नाटिका ।
( 5 ) श्री- बासन्ती , मालवी , मालश्री , धनासिक , आसावरी ।
( 6 ) मेघ- मल्लारी , देशकारी , भूपाली , गुर्जरी , टंका ।
(3) कल्लिनाथमत - की 6 राग और 36 रागिनियाँ इस प्रकार हैं।
( 1 ) श्री- गौरी , कोलाहल , धवल , वरोराजी , मालकोश , देवगंधार ।
( 2 ) बसन्त- अधाली , गुणकली , पटमंजरी , गौड़गिरी , धांकी , देवसाग ।
( 3 ) भैरव- भैरवी , गुर्जरी , बिलावली , बिहाग , कर्नाट , कानड़ा ।
( 4 ) पंचम- त्रिवेणी , हस्ततरेतहा , अहीरी , कोकम , बेरारी , आसावरी ।
( 5 ) नटनारायण- तिबन्की , त्रिलंगी , पूर्वी , गांधारी , रामा , सिंधु
( 6 ) मेघ- बंगाली , मधुरा , कामोद , धनाश्री , देवतीर्थी , दिवाली ।
(4) भरत की 6 राग और 36 रागिनियाँ इस प्रकार हैं।
( 1 ) भैरव- मधुमाधवी , ललिता , बरोरी , भैरवी , बहुली ।
( 2 ) मालकोश- गुर्जरी , विद्यावती , तोड़ी , खम्बावती , ककुभ ।
( 3 ) हिंडोल- रामकली , मालवी , आसावरी , देवरी , केकी ।
4 ) दीपक- केदारी , गौरी , रुद्रावती , कामोद , गुर्जरी ।
( 5 ) श्री- सैंधवी , काफी , ठुमरी , विचित्रा , सोहनी ।
( 6 ) मेघ- मल्लारी , सारंग , देशी , रतिवल्लभा , कानरा ।
इस प्रकार राग - रागिनियों की वंशावली चल पड़ी। उपरोक्त चारों मतों में श्री , भैरव तथा हिंडोल इन तीनों रागों को मुख्य 6 रागों में तो सम्मिलित किया गया , किन्तु आगे चलकर , किन्ही भी दो वर्गीकरणों में समता नहीं रही है। आज यह बताना बड़ा ही कठिन है कि राग - रागिनी पद्धति में स्वरसाम्य , स्वरूप - साम्य अथवा दोनों का ध्यान रखा गया था , क्योंकि मध्यकालीन राग - रागिनियाँ आधुनिक रागों से भिन्न थी।
ॐ नमो नारायणाय
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